Police custody vs Judicial custody | पुलिस हिरासत और न्यायिक हिरासत में क्या अंतर है। |

पुलिस कस्टडी और ज्यूडिशल कस्टडी जिसे हिंदी में पुलिस हिरासत और न्यायिक हिरासत कहा जाता है, कानूनी गतिविधियों में उपयोग किए जाने वाले यह दो शब्द अक्सर तब सुनने को मिलते हैं जब एक आरोप के तहत किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर उस पर मुकदमा चलाया जाता है।

यह दोनों शब्द एक जैसे लगते जरुर हैं पर होते नही हैं, यह कई प्रकार से एक दूसरे से अलग होते है, आज इस लेख में हम पुलिस हिरासत और न्यायिक हिरासत में अंतर को देखने वाले है, इन दोनों शब्दों के बीच अंतर समझने के लिए आपका पुलिस हिरासत क्या है और न्यायिक हिरासत क्या है, जैसे सवालो का जवाब और कुछ महत्वपूर्ण बातें जानना जरूरी हो जाता है तो चलिए जानते है उन बातों को और समझते है पुलिस हिरासत बनाम न्यायिक हिरासत

 Police Custody vs Judicial Custody
पुलिस हिरासत vs न्यायिक हिरासत


इस लेख में उपलब्ध content

महत्वपूर्ण जानकारी

पुलिस कस्टडी और जुडिशल कस्टडी दोनों ही शब्दों में कस्टडी शब्द समान हैं और कानूनी गतिविधियों में कस्टडी या हिरासत शब्द को आमतौर पर दो परिस्थितियों में उपयोग किया जाता हैं,

पहला जब किसी शादी-शुदा जोडों के तलाख होने पर उनके बच्चे के देखभाल की जिम्मेदारी उन्ही में से किसी एक को सौपी जाती हैं तथा दूसरा जब किसी केस की निष्पक्ष जांच पड़ताल के लिए आरोपी को पुलिस या जांच एजेंसी के निगरानी में रखा जाता हैं।

पुलिस हिरासत और न्यायिक हिरासत अंतर्गत भी आरोपी को पुलिस या कोर्ट द्वारा अपने निगरानी में रखा जाता हैं और उनकी आवाजाही पर पाबंदी लगाया जाता हैं, ताकि वह केस से जुड़े कोई सबूत के साथ छेड़छाड़ न कर सके और न ही केस की निष्पक्ष जांच पड़ताल में कोई बाधा उत्पन्न कर सके।

महत्वपूर्ण नोट

नोट :- "संविधान के अनुच्छेद 22 के अनुसार पुलिस गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को बिना नजदीकी कोर्ट या मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किए 24 घण्टे से ज्यादा पुलिस स्टेशन में नहीं रख सकती है",

तथा आमतौर पर 24 घंटे के अंदर पुलिस द्वारा किसी भी आरोप या केस की जांच पड़ताल को भी पूरा नहीं किया जा सकता है, इसलिए जब पुलिस आरोपी को 24 घंटे के अंदर मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करती है तो वह आरोपी की कस्टडी मांगती है,

जिससे कि पुलिस को समय मिले और वह आरोपों की जांच को आगे सही दिशा में बढ़ा सकें, यहां पुलिस द्वारा मांगी गई कस्टडी पुलिस कस्टडी या जुडिशल कस्टडी कोई भी हो सकती हैं।

ऊपर आपने यह तो जान लिया कि आरोपी को पुलिस कस्टडी या जुडिशल कस्टडी में क्यों रखा जाता है, आइये अब देखते हैं कि आखिर पुलिस कस्टडी और जुडिशल कस्टडी क्या होता है और यह कैसे एक दूसरे से अलग होते है, तो सबसे पहले

पुलिस हिरासत क्या है :-

किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर पुलिस स्टेशन के लॉकअप में रखना पुलिस हिरासत कहलाता है। इसमे पुलिस के पास आरोपी की शारीरिक हिरासत होती हैं और आरोपी पुलिस की निगरानी में ही पुलिस लॉकअप में मौजूद रहता हैं।

न्यायिक हिरासत क्या है :-

किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर पुलिस स्टेशन लॉकअप के बदले जेल में रखा जाना न्यायिक हिरासत कहलाता है।

पुलिस हिरासत और न्यायिक हिरासत में अंतर

इन दोनों ही शब्दों पुलिस कस्टडी और जुडिशल कस्टडी में मुख्य अंतर यह हैं कि जब किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस स्टेशन के लॉकअप में रखा जाता है तो वह पुलिस कस्टडी कहलाता है, लेकिन अगर आरोपी की गिरफ्तारी के बाद आरोपी को पुलिस स्टेशन लॉकअप के बदले जेल में रखा जाता है तो उसे जुडिशल कस्टडी कहा जाता है।

नीचे पुलिस हिरासत और न्यायिक हिरासत के बीच कुछ और प्रमुख अंतर दिए गए हैं।

difference between police custody And judicial custody in hindi :-

  1. पुलिस कस्टडी में रखे गए आरोपी से पूछताछ करने के लिए पुलिस को किसी की अनुमति नहीं लेनी पड़ती है, जबकि ज्यूडिशल कस्टडी में रखे गए आरोपी से पूछताछ करने के लिए पुलिस को संबंधित मजिस्ट्रेट की अनुमति लेनी होती है।

  2. किसी व्यक्ति को पुलिस हिरासत में रखने का उद्देश्य आरोपी से केस से संबंधित पूछताछ करना होता है जबकि न्यायिक हिरासत में आरोपी को रखने का मुख्य उद्देश्य उसके आवाजाही पर पाबंदी लगाना होता है जिससे की आरोपी केस से जुड़े सबूतों के साथ छेड़छाड़ ना कर सके और ना ही केस के निष्पक्ष जांच पड़ताल में कोई बाधा उत्पन्न कर सके।

  3. पुलिस कस्टडी में आरोपी की जिम्मेदारी पुलिस के पास होती है जबकि जुडिशल कस्टडी में आरोपी की जिम्मेदारी संबंधित मजिस्ट्रेट के पास होती है।

  4. किसी भी आरोपी को अधिकतर 15 दिनों तक पुलिस कस्टडी में रखा जाता है जबकि जुडिशल कस्टडी में ऐसे अपराध जिसकी सजा फांसी, उम्रकैद निर्धारित की गई है, ऐसे आरोप के लिए 90 दिन तथा ऐसे अपराध जिसकी सजा 10 वर्ष से कम उम्र निर्धारित की गई है , उनके लिए 60 दिनों तक रखा जाता है।

  5. यह हम आपको पर बता चुके हैं, लेकिन एक बार फिर बता रहे हैं कि किसी आरोपी को गिरफ्तार करके पुलिस स्टेशन के लॉकअप में रखना पुलिस कस्टडी कहलाता है, जबकि एक आरोपी की गिरफ्तारी के बाद उसे पुलिस स्टेशन लॉकअप के बदले जेल में रखा जाना जुडिशल कस्टडी कहलाता है।


अब तक आप यह तो समझ चुके होंगे कि आरोपी को पुलिस कस्टडी व जुडिशल कस्टडी में क्यों रखा जाता है, पुलिस कस्टडी और जूडिशल कस्टडी वास्तव में क्या होते हैं और इनके बीच क्या अंतर होता है। यह सब को जानने के बाद आपके मन में यह सवाल भी जरूर आ रहा होगा कि कब या किस परिस्थिति में एक आरोपी को पुलिस कस्टडी में रखा जाता है और कब जुडिशल कस्टडी में, तो चलिए पहले बात करते हैं

कब या किस परिस्थिति में एक आरोपी को पुलिस कस्टडी में रखा जाता है

वैसे इस सवाल का जवाब काफी सरल हैं, आरोपी की गिरफ्तारी के बाद जब पुलिस या जांच एजेंसीे आरोपी को कोर्ट में मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करती है तो वहां पुलिस कुछ तथ्यों या सबूतों के आधार पर कोर्ट को यह बताती है कि आरोपी पर लगे आरोपों की जांच पड़ताल करने या केस को आगे सही दिशा में ले जाने के लिए आरोपी से पूछताछ किया जाना जरूरी है

और पुलिस द्वारा प्रस्तुत किए गए तथ्यों या सबूतों के आधार पर अगर मजिस्ट्रेट को भी लगता है कि हां, केस की निष्पक्ष और सही ढंग से जाँच होने के लिए आरोपी से पूछताछ करना जरूरी है तो मजिस्ट्रेट द्वारा आरोपी को पुलिस कस्टडी यानी की पुलिस हिरासत में भेज दिया जाता हैं।

कब या किस परिस्थिति में एक आरोपी को जुडिशल कस्टडी में रखा जाता है

जब किसी केस की जांच पड़ताल के लिए आरोपी से पूछताछ करने की जरूरत नहीं होती हैं पर पुलिस द्वारा मजिस्ट्रेट को बताया जाता हैं की अगर आरोपी को छोड़ दिया जाए तो वह केस से जुड़े सबूतों के साथ छेड़छाड़ कर सकता हैं और केस के जाँच पड़ताल में कोई बाधा उत्पन्न कर सकता हैं तो ऐसे परिस्थिति से निपटने के लिए मजिस्ट्रेट द्वारा आरोपी को ज्यूडिशियल कस्टडी या न्यायिक हिरासत में भेज दिया जाता हैं।



इस पोस्ट के माध्यम से हमने काफी सरल भाषा में पुलिस कस्टडी और जूडिशल कस्टडी से जुड़ी अहम जानकारी आपसे साझा की हैं हमे उम्मीद है कि पुलिस कस्टडी और जुडिशल कस्टडी से जुड़े सवालों के जवाब आपको मिल गए होंगे।

अगर इस पोस्ट से जुड़े कोई सुझाव, शिकायत या प्रतिक्रिया हो तो कमेंट में जरूर बताएं और साथ ही अगर आपको यह आर्टिकल पसंद आया तो इसे शेयर भी जरूर करें।


police custody vs judicial custody को तो आप समझ गए होंगे, इस आर्टिकल को पढ़ने के दौरान आपको इसमे मजिस्ट्रेट शब्द कई बार देखने को मिला होगा, पुलिस हिरासत और न्यायिक हिरासत की तरह ही मजिस्ट्रेट तथा कानून और न्याय से जुड़ा एक और शब्द जज, ये दो ऐसे शब्द है जिसको लेकर लोग काफी असमंजस में नजर आते है, अगर आप भी उनमें से एक है तो आपको जरूर जानना चाहिए जज और मजिस्ट्रेट के बीच का अंतर।

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